रविवार, 22 नवंबर 2015

लघुव्यंग्य –देवी मां

लघुव्यंग्य –देवी मां

प्रत्येक सोमवार को उसे देवी की सवारी आती है |लोगो का मजमा लगा रहता उसके द्वार पर | लोग अपनी समस्याएं सुलझाने आते हैं देवी मां की सवारी से |
  यह क्रम महीनों से चला आ रहा है | मगर इस सवारी के उपक्रम को लेकर मेरे मन में कई प्रश्न कौंध रहे थे |एक दिन मैंने उससे कहा –‘’ भाभी जी , एक बात पूछूं |’
‘’ कहो |’’
‘’ आप भाईसाब से इतनी परेशान रहती हैं | फिर देवी मां  की सवारी आपकी समस्या क्यों नहीं हल करती | जबकि लोगों की भीड़ आपके द्वार पर होती है ... समस्या सुलझाने को लेकर ...| ‘’
‘’ भाईसाब मुझे एक वचन दो | किसी से न कहोगे |संबंधो की दुहाई देकर मैं हामी भरा |  वह बोली – ‘’ भाईसाब आप देख रहे हैं | ये तो अपनी कमाई को पीने में उड़ा देते हैं | तब मुझे अपने व एक बच्चे का पेट भरना बड़ी समस्या थी मेरे सामने ...दिन -दिनभर भूख में रोता बिलखता बच्चा मेरा ...| उसके आँख में आंसू आ गए | किसी तरह खुद को संभालती हुई बोली –‘’ बहुत सोच के बाद  इस आधुनिक युग में भी लोगों  के मष्तिष्क में जड़ जमाए  रूढ़िवादिता के अंधत्व  को पहचाना मैंने| फिर यह कारोबार चुन लिया |आज भीड़  मेरे चरणों में चढ़ोतरी  भी देती है  और शोहरत भी |बताइये पेट चलाने के लिए मैंने क्या बुरा किया .....|’’

  मैं अनुत्तरित था |किसे  झूठ कहूं ? उसे या लोगों के दिमाग में भरी रूढ़िवादिता को |

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