रविवार, 31 जनवरी 2016

लघुव्यंग्य – बस यूँ ही

लघुव्यंग्य – बस यूँ ही

स्थान्तरित होकर आए नए साहब ने सबसे पहले दफ्तर की दीवार पर बड़े अक्षर में लिखवाया –‘’ इस कार्यालय में ध्रूमपान पूर्णत: निषेध है |ध्रूमपान करते पाए जाने पर दो सौ रुपये का जुर्माना किया जाएगा |
लेकिन उनके कक्ष की टेबिल पर राखी  ऐशट्रे  शाम तक सिगरेट की राख से भर जाती | प्रतिक्रया में वे कहते पाए जाते –‘’ सरकारी दफ्तरों में आजकल शब्दों की धकोसलेबाजी की उठापटक ही तो चल रही है |’


सुनील कुमार ‘सजल’ 

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

व्यंग्य – आधुनिक विचार

व्यंग्य – आधुनिक विचार

‘’ परसों तू जिस लड़की की फोटो दिखा रहा था |तू और तेरे घर वाले देख आए उसे ...?’’ साथी ने प्रश्न किया |’
‘’ हां..पर मुझे पसंद नहीं आई |’’ विनीत ने कहा |’’
‘’ क्यों..? इतनी खूबसूरत लड़की तुझे पसंद नहीं आ रही ... बेवकूफ है तू पूरा का पूरा | ‘’’
‘’ अबे वह बात नहीं ... वह तो शांत है अच्छी है |’’
‘’ तो कौन सी बात है |’’
‘’ मुझे कमाऊ लड़की चाहिए , जो शादी के बाद भी चार पैसे कमा सके ... देख रहा है मंहगाई का रौद्र रूप ... अकेले की कमाई से गुजारा हो सकेगा ? मुझे रंग रूप नहीं बल्कि वक्त से टकराने वाली लड़की चाहिए  समझा...|’’
साथी सहमत था |

सुनील कुमार सजल 

शनिवार, 2 जनवरी 2016

नया साल तुम्हारा अभिनन्दन

नया साल तुम्हारा अभिनन्दन

नए साल
तुम्हारा अभिनन्दन है
अधरों ने
मुस्कुराकर
स्वागत किया
मन ने पिछले दर्दों को
भुला दिया
साँस-सांस में
महक रही
धुल-चन्दन है
सपनों की बस्ती
फिर संवर गयी
मन-अम्बर में उम्मीदों की
चांदनी खिल गयी
आशाओं की कलाई में
खुशियों का

कंगन है