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शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

व्यंग्य – आधुनिक विचार

व्यंग्य – आधुनिक विचार

‘’ परसों तू जिस लड़की की फोटो दिखा रहा था |तू और तेरे घर वाले देख आए उसे ...?’’ साथी ने प्रश्न किया |’
‘’ हां..पर मुझे पसंद नहीं आई |’’ विनीत ने कहा |’’
‘’ क्यों..? इतनी खूबसूरत लड़की तुझे पसंद नहीं आ रही ... बेवकूफ है तू पूरा का पूरा | ‘’’
‘’ अबे वह बात नहीं ... वह तो शांत है अच्छी है |’’
‘’ तो कौन सी बात है |’’
‘’ मुझे कमाऊ लड़की चाहिए , जो शादी के बाद भी चार पैसे कमा सके ... देख रहा है मंहगाई का रौद्र रूप ... अकेले की कमाई से गुजारा हो सकेगा ? मुझे रंग रूप नहीं बल्कि वक्त से टकराने वाली लड़की चाहिए  समझा...|’’
साथी सहमत था |

सुनील कुमार सजल 

रविवार, 18 अक्तूबर 2015

1.नाड़ा

1.नाड़ा

गाँधी जी के सपनों को
साकार करने का उन्होंने बीड़ा उठाया है
 प्रदेश में पंचायती राज को लाया है ,
गाँव-गाँव को अखाड़ा बनाया है ,
 न नजारा कुश्ती का है ,न मसला मुक्केबाजी का,
एक सभा होती है ,
जनप्रतिनिधि होते हैं ,जनता होती है,

खींचा जाता है जहां जनहित का नाड़ा