शनिवार, 12 दिसंबर 2015

@ जरूर

@ जरूर

'' सर आपके दफ्तर में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुँच रहा है |'' पत्रकार ने अफसर से कहा |
''आपकी तकलीफ ....|''
''अगर आपने अंकुश नहीं लगाया तो हम अपने अखबार ,में छाप देंगे ...|''
'' चाप दीजिए ...जरूर छाप दीजिए ... वैसे भी मैं  इस खेत्र में अभी पदस्थ हुआ हूँ |कम से कम लोगों को मेरे स्वभाव के बारेमें पता तो चल जाएगा |अफसर ने पूरे इत्मीनान से जवाब दिया |

@सच

@सच

नेता किस-किस जन को करे खुश ,
और जनता भी किस-किस नेता को |
दोनों नाखुश हैं ,
पर कष्ट जनता ही सहती है |

@सीख

@सीख

उन्होंने सलाह भरे
अंदाज में कहा – बेटा मनरीख,
मुफ्त में साहित्य सृजन कर कोरे कागज़ पर
तन, मन धन मत घिस ,
क्रिकेट खेल टी.वी./ विज्ञापन में दिख , धन बटोरने कि तुझे

मेरी यही सीख | 

मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

स्वभाव

@स्वभाव

कभी-कभी हवन करते हमारे हाथ जल जाते हैं ,
पर दोस्तों हम कब कतरातें हैं ,
जले हाथों से ही ,
अपनों के घाव में ,

मलहम की जगह नमक ही लगाते हैं  |

बुधवार, 25 नवंबर 2015

दो बातें

@सोच
सूखे के बाद अचानक हो रही,
 भारी वर्षा के दौर के बाद वे नेताजी से बोले –
‘’ काश यह झड़ी पहले लगी होती
 तो न फसलें सूखती  और न  किसान  रोता |
नेताजी बोले –‘’ अगर ऐसा होता तो हमारी कुंडली में
 लिखा लाभ योग , राहत कार्य के रूप में
फलित कैसे होता |
@ भाग- दौड़
मैंने पत्नी से कहा-
सूना तुमने श्याम जी का पुत्र
एक लड़की के साथ भाग गया ,
वह मुंह बनाती हुई यूँ बोली –
यह भी कोई नई बात हुई जी,
भागने दो , दोनो भागकर कहाँ तक जाएंगे ,
श्याम जी वैसे भी पुरस्कृत धावक हैं ,
 दौड़कर उन्हें पकड़ लायेंगे |

ज्ज्ज्जज्ज्ज्ज 

रविवार, 22 नवंबर 2015

लघुव्यंग्य –देवी मां

लघुव्यंग्य –देवी मां

प्रत्येक सोमवार को उसे देवी की सवारी आती है |लोगो का मजमा लगा रहता उसके द्वार पर | लोग अपनी समस्याएं सुलझाने आते हैं देवी मां की सवारी से |
  यह क्रम महीनों से चला आ रहा है | मगर इस सवारी के उपक्रम को लेकर मेरे मन में कई प्रश्न कौंध रहे थे |एक दिन मैंने उससे कहा –‘’ भाभी जी , एक बात पूछूं |’
‘’ कहो |’’
‘’ आप भाईसाब से इतनी परेशान रहती हैं | फिर देवी मां  की सवारी आपकी समस्या क्यों नहीं हल करती | जबकि लोगों की भीड़ आपके द्वार पर होती है ... समस्या सुलझाने को लेकर ...| ‘’
‘’ भाईसाब मुझे एक वचन दो | किसी से न कहोगे |संबंधो की दुहाई देकर मैं हामी भरा |  वह बोली – ‘’ भाईसाब आप देख रहे हैं | ये तो अपनी कमाई को पीने में उड़ा देते हैं | तब मुझे अपने व एक बच्चे का पेट भरना बड़ी समस्या थी मेरे सामने ...दिन -दिनभर भूख में रोता बिलखता बच्चा मेरा ...| उसके आँख में आंसू आ गए | किसी तरह खुद को संभालती हुई बोली –‘’ बहुत सोच के बाद  इस आधुनिक युग में भी लोगों  के मष्तिष्क में जड़ जमाए  रूढ़िवादिता के अंधत्व  को पहचाना मैंने| फिर यह कारोबार चुन लिया |आज भीड़  मेरे चरणों में चढ़ोतरी  भी देती है  और शोहरत भी |बताइये पेट चलाने के लिए मैंने क्या बुरा किया .....|’’

  मैं अनुत्तरित था |किसे  झूठ कहूं ? उसे या लोगों के दिमाग में भरी रूढ़िवादिता को |

गुरुवार, 12 नवंबर 2015

तीन बकवास

 तीन बकवास 
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@रमिया
गाँव की रमिया घर-घर नाच गा रही है ,
किसी तरह उसकी
रोजी रोटी चल रही है
पर लोगो की नज़रों में उसकी कला की क़द्र नहीं है ,
बल्कि उसकी गदराई जवानी खल रही है |
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@रहस्य
नेताजी की पत्नी अपनी पड़ोसन से बोली –
‘’आप शायद नहीं जानती दीदी ,
इनके रहस्य बड़े गहरे हैं ,सुनते तो सबकी हैं , पर बेचारे बहरे हैं |
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@ शोषण
छोटे वर्गों का हमेशा से शोषण हुआ है मेरे भाई,
जब भी उन्होंने ने संघर्ष का कदम उठाया
एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खोद दी गई खाई
    सुनील कुमार सजल